हिंदी कहानियां - भाग 179
वो तेरा मुझसे यूं टकरा जाना
वो तेरा मुझसे यूं टकरा जाना सिटी बसों का सफर भी बड़ा मजेदार होता है इस शहर में। लेडीज सीट पर जेंट्स, डिसएबल सीट पर हेल्दी और विधायक सीट तो जैसे कब से किसी विधायक के आने का इंतजार कर रही हो। इसमें चढ़ने के लिए भी एक खास ट्रिक है। बस भीड़ का हिस्सा बन जाइए बाकी का काम लोग खुद ही कर देते हैं। उसी भीड़ में पहली बार मैंने तुम्हें सीट पाने के लिए जद्दोजेहद करते देखा। ब्लू साड़ी में कितनी खूबसूरत लग रही थी तुम। पर उस दिन शायद वह साड़ी ही तुम्हारी परेशानी की वजह बन गई थी। तुम्हें देखकर लग रहा था कि शायद पहली बार तुम सिटी बस में ट्रैवल कर रही थी, तभी तुम्हें इसमें चढ़ने का फ़ॉर्म्युला नहीं पता था। तुम एक बार भीड़ के बीच आई भी पर धक्का-मुक्की के चलते तुम सबके चढ़ने का इंतजार करने लगी। लास्ट में जब तुम चढ़ी तो सीट नहीं मिली और पास ही तुम सीट पकड़ कर खड़ी हो गई। मैं हर बार तुम्हें किसी न किसी बहाने से देखता और हमारी नजरें टकरा जातीं। इस पर तुम ऐसे रिएक्ट करती जैसे तुम्हें मुझमें कोई इंट्रेस्ट नहीं। इसी बीच भीड़ कम होती गई पर तुम्हें सीट नहीं मिली। यकीन मानों उस दिन पहली बार मैं चाहता था कि कोई लेडी खड़ी रहे। शायद इसमें मेरा मतलब छिपा था। मैं नहीं चाहता था कि तुम मेरी नजरों से दूर जाओ। कुछ तो था उसके चेहरे में जिसकी वजह से हर बार उस पर जाकर मेरी आंखें अटक जाती थीं। इसी बीच ड्राइवर ने अचानक ब्रेक मारा और तुम झटके से लगभग मेरे ऊपर ही गिर गई। दावे के साथ कहता हूं वह मेरी लाइफ का बेस्ट मोमेंट था। किसी फिल्मी सीन सा था वो। उसके बाद तुम शर्माते हुए खड़ी हो गईं पर हमारी आंखें अब भी उलझी थीं। कुछ दूर जाकर तुम उतर गईं पर मेरे दिल से तुम्हारा खुमार है कि उतरता ही नहीं।